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राष्ट्रीय कृषि विकास योजना

आलू प्याज भंडारण गृह खोलने के लिए इस राज्य में दी जा रही बंपर छूट

आलू प्याज भंडारण गृह खोलने के लिए इस राज्य में दी जा रही बंपर छूट

राजस्थान राज्य के 10,000 किसानों को प्याज की भंडारण इकाई हेतु 50% प्रतिशत अनुदान मतलब 87,500 रुपये के अनुदान का प्रावधान किया गया है। बतादें, कि राज्य में 2,500 प्याज भंडारण इकाई शुरू करने की योजना है। फसलों का समुचित ढंग से भंडारण उतना ही जरूरी है। जितना सही तरीके से उत्पादन करना। क्योंकि बहुत बार फसल कटाई के उपरांत खेतों में पड़ी-पड़ी ही सड़ जाती है। इससे कृषकों को काफी हानि वहन करनी होती है। इस वजह से किसान भाइयों को फसलों की कटाई के उपरांत समुचित प्रबंधन हेतु शीघ्र भंडार गृहों में रवाना कर दिया जाए। हालांकि, यह भंडार घर गांव के आसपास ही निर्मित किए जाते हैं। जहां किसान भाइयों को अपनी फसल का संरक्षण और देखभाल हेतु कुछ भुगतान करना पड़ता है। परंतु, किसान चाहें तो स्वयं के गांव में खुद की भंडारण इकाई भी चालू कर सकते हैं। भंडारण इकाई हेतु सरकार 50% प्रतिशत अनुदान भी प्रदान कर रही है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि राजस्थान सरकार द्वारा प्याज भंडारण हेतु नई योजना को स्वीकृति दे दी गई है। जिसके अंतर्गत प्रदेश के 10,000 किसानों को 2,550 भंडारण इकाई चालू करने हेतु 87.50 करोड़ रुपए की सब्सिड़ी दी जाएगी।

भंडारण संरचनाओं को बनाने के लिए इतना अनुदान मिलेगा

मीडिया खबरों के मुताबिक, किसानों को विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत प्याज के भंडारण हेतु सहायतानुदान मुहैय्या कराया जाएगा। इसमें प्याज की भंडारण संरचनाओं को बनाने के लिए प्रति यूनिट 1.75 लाख का खर्चा निर्धारित किया गया है। इसी खर्चे पर लाभार्थी किसानों को 50% फीसद अनुदान प्रदान किया जाएगा। देश का कोई भी किसान अधिकतम 87,500 रुपये का फायदा हांसिल कर सकता है। ज्यादा जानकारी हेतु निजी जनपद में कृषि विभाग के कार्यालय अथवा राज किसान पोर्टल पर भी विजिट कर सकते हैं। ये भी पढ़े: Onion Price: प्याज के सरकारी आंकड़ों से किसान और व्यापारी के छलके आंसू, फायदे में क्रेता

किस योजना के अंतर्गत मिलेगा लाभ

राजस्थान सरकार द्वारा प्रदेश के कृषि बजट 2023-24 के अंतर्गत प्याज की भंडारण इकाइयों पर किसानों को सब्सिड़ी देने की घोषणा की है। इस कार्य हेतु राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अंतर्गत 1450 भंडारण इकाइयों हेतु 12.25 करोड रुपये मिलाके 34.12 करोड रुपये व्यय करने जा रही है। इसके अतिरिक्त 6100 भंडारण इकाईयों हेतु कृषक कल्याण कोष द्वारा 53.37 करोड़ रुपये के खर्च का प्रावधान है। ये भी पढ़े: भंडारण की परेशानी से मिलेगा छुटकारा, प्री कूलिंग यूनिट के लिए 18 लाख रुपये देगी सरकार

प्याज की भंडारण इकाई बनाने की क्या जरूरत है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि इन दिनों जलवायु परिवर्तन से फसलों में बेहद हानि देखने को मिली है। तीव्र बारिश और आंधी के चलते से खेत में खड़ी और कटी हुई फसलें तकरीबन नष्ट हो गई। अब ऐसी स्थिति में सर्वाधिक भंडारण इकाईयों की कमी महसूस होती है। यह भंडारण इकाईयां किसानों की उत्पादन को हानि होने से सुरक्षा करती है। बहुत बार भंडारण इकाइयों की सहायता से किसानों को उत्पादन के अच्छे भाव भी प्राप्त हो जाते हैं। यहां किसान उत्पादन के सस्ता होने पर भंडारण कर सकते हैं। साथ ही, जब बाजार में प्याज के भावों में वृद्धि हो जाए, तब भंडार गृहों से निकाल बेचकर अच्छी आय कर सकते हैं।
आप खेती में स्टार्टअप शुरू करना चाहते है, तो सरकार आपकी करेगी मदद

आप खेती में स्टार्टअप शुरू करना चाहते है, तो सरकार आपकी करेगी मदद

जो भी युवा या किसान खेती - किसानी के क्षेत्र में अपना खुद का बिजनेस या स्टार्टअप शुरू करना चाहते हैं, उन्हें सरकार राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत 25 लाख रुपए देगी. जिससे युवा और किसान पहले एग्रीकल्चर स्टार्टअप (Agriculture Startup) फिर यूनिकॉर्न तक का सफर तय करेंगे. यदि आपके पास खेती - किसानी से संबंधित कोई बढ़िया आइडिया है और आप अपनी 7 - 10 हजार महीने वाली नौकरी से तंग आ गए है, आपके पास खेती को और ज्यादा बहतरीन करने का आइडिया है तो आप खेती में स्टार्टअप शुरू कर सकते है. RKVY स्कीम के तहत सरकार आपकी मदद करेगी. इन लोगो को सरकार ने एग्रीप्रेन्योर (agripreneur) नाम दिया है.

खेती में आधुनिक उपकरण के इस्तमाल से किसानों को क्या फायदा ?

अभी के समय में हमारा देश किसी और देश से पीछे नहीं है. हमारा देश अब स्मार्ट इंडिया बन रहा है. सरकार कोशिश कर रही है कि किसान खेती में आधुनिक चीजों का इस्तमाल करे. हर किसान यही चाहता है की खेती में खर्च कम हो और पैदावार ज्यादा जो की सिर्फ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (A.I) के इस्तमाल से ही संभव है. खेती में मशीनों के इस्तमाल से किसानों को महनत और समय दोनो कम लगेगा और साथ ही उत्पादन अधिक होगा और ज्यादा मजदूर न रखने होंगे जिससे खेती में खर्च भी काम होगा.

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देश की उन्नति स्टार्टअप बन रहे है यूनिकॉर्न, जानिए इसमें केंद्रीय वाणिज्य मंत्री ने क्या कहा:

आज के समय बहुत से स्टार्टअप यूनिकॉर्न बन रहे है. केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि देश में 102 स्टार्टअप अब यूनिकॉर्न बन गए है. ये हमारे लिए गर्व की बात है.

कोरोना में जहां लोगो के पास रोजगार नहीं था वहां कैसे स्टार्टअप बन रहे है यूनिकॉर्न

कोरोना ने देश में बहुत से लोगो के रोजगार छीन लिए. जहां पर लोग रोजगार की समस्या से जूझ रहे थे, वही पर कई सारे स्टार्टअप यूनिकॉर्न बन रहे थे और कुछ यूनिकॉर्न बनने के नजदीक है. इनमे से कुछ लोगो ने सरकार से मदद ली और कई ने घर में रखी जमा पूंजी को सही जगह निवेश किया और आज वो सक्सेस हो गए है.

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ऐसे में यदि आप लोग भी नौकरी में मिल रही सैलरी से संतुष्ट नही है तो आप भी खेती में स्टार्टअप शुरू कर सकते है. जिससे किसानों की भी मदद होगी और आप भी इससे पैसे कमा सकते है. खेती पे कई सारे स्टार्टअप तो शुरू भी हो चुके है.

सरकार भी ऐसे कामों में मदद करती है

यदि आप पशुपालक है आप मुर्गी और दुधारु जीवो का पालन कर रहे है. तो आप मशीनों की मदद से दूध को पैक कर उन्हें बेच कर ज्यादा पैसे कमा सकते है.

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ये भी एक तरीके का बिजनेस ही है. स्टार्टअप शुरू करने के बाद आप दूसरों को भी रोजगार दे सकते है जिससे देश की रोजगार की समस्या कम होगी.
हरियाणा के 10 जिलों के किसानों को दाल-मक्का के लिए प्रति एकड़ मिलेंगे 3600 रुपये

हरियाणा के 10 जिलों के किसानों को दाल-मक्का के लिए प्रति एकड़ मिलेंगे 3600 रुपये

ढैंचा, मक्का के लिए प्लान

झज्जर, रोहतक और सोनीपत के खेतों में नहीं भरेगा पानी

बीस हजार एकड़ जमीन पर जलभराव की समस्या का होगा निदान

हरियाणा में राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (
Rashtriya Krishi Vikas Yojana (RKVY)) के अंतर्गत कृषि और किसान हित से जुड़े प्रोजेक्ट को मंजूरी प्रदान की गई है। यह प्रोजेक्ट 159 करोड़ रुपए का होगा। इस प्रोजेक्ट में किसानों की समस्याओं के समाधान के साथ ही फसलों की बेहतरी से जुड़े बिंदुओं पर ध्यान दिया गया है।

फसल विविधता का लक्ष्य

देश के लिए तय फसल विविधता के लक्ष्य को साधते हुए, हरियाणा राज्य में भी फसल विविधीकरण के लिए फसल विविधता का कदम उठाया गया है।


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मुख्य सचिव संजीव कौशल की अध्यक्षता में राज्य स्तरीय अनुमोदन समिति ने राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अंतर्गत इस प्रोजेक्ट को अनुमति प्रदान की है। हरियाणा राज्य में फसल विविधीकरण के लिए 38.50 करोड़ रुपये के बजट पर मुहर लगाई गई।

मक्का और दलहन प्रोत्साहन राशि

हरियाणा में मक्का उत्पादक किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए प्रदेश सरकार ने प्रोत्साहन राशि घोषित की है। प्रदेश में मक्का की पैदावार करने वाले किसानों को 2400 रुपए प्रति एकड़ के मान से प्रोत्साहन राशि प्रदान की जाएगी। दलहन फसलों से जुड़े किसानों के लिए भी प्रोत्साहन राशि का प्रबंध किया गया है। दलहन (Pulses) पैदावार करने वाले कृषकों को प्रदेश सरकार ने 3600 रुपए प्रति एकड़ प्रोत्साहन राशि प्रदान करने का निर्णय लिया है। प्रदेश सरकार ने दलहनी और तिलहनी उपज को बढ़ावा देने अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की है।


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फसल विविधीकरण का कारण

हरियाणा राज्य सरकार, किसानों का रुझान परंपरागत खेती के साथ अन्य लाभदायक फसलों की ओर खींचने के लिए फसल विविधीकरण कार्यक्रम पर खास फोकस कर रही है। फसल विविधीकरण से सरकार का लक्ष्य सिंचन जल संचय के साथ ही किसानों की आय में वृद्धि करना है।

ढैंचा, मक्का के लिए प्लान

फसल विविधीकरण के लक्ष्य को साधने के लिए स्थानीय फसलों को प्रोत्साहित करने का सरकार का प्लान है। मुख्य सचिव ने कहा कि, हरियाणा के 10 जिलों में ढैंचा (Dhaincha, Sesbania bispinosa), मक्का और दलहनी फसलों के लिए योजना तैयार की गई है। फसल विविधीकरण की योजनाओं की मदद से इन फसलों के लिए 50 हजार एकड़ भूमि पर दलहन की पैदावार करने वाले किसानों को प्रोत्साहित किया जाएगा।

इसके लाभ

फसल विविधीकरण से राज्य की भूमि के स्वास्थ्य संवर्धन में मदद मिलेगी। इस विधि से फसल चक्र बदलने से भूजल स्तर सुधरेगा। फसल चक्र बदलने से भूजल स्तर को गिरने से रोकने में भी मदद मिलेगी।

जलभराव से मुक्ति का लक्ष्य

हरियाणा में खेत में जलभराव की समस्या से परेशान किसानों की समस्या के लिए भी सरकार ने खास तैयारी की है।


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मुख्य सचिव के मुताबिक प्रदेश के किसानों को जलभराव की समस्या से निजात दिलाने के लिए पोर्टल मदद प्रदान करेगा। इच्छुक किसान पोर्टल पर जानकारी प्रदान कर अपने खेत में भरे पानी की निकासी करवा सकता है। इस साल झज्जर, रोहतक, सोनीपत के किसानों की जलभराव संबंधी समस्या के समाधान का भी लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इसके अनुसार 20 हजार एकड़ भूमि की जलभराव संबंधी समस्या का निदान किया जाएगा।

स्वायल हेल्थ कार्ड

स्वायल हेल्थ कार्ड योजना (Soil Health Card Scheme) से हरियाणा में की जा रही मिट्टी की जांच के बारे मेें भी मुख्य सचिव ने ध्यान आकृष्ट किया।


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उन्होंने बताया कि, प्रदेश में किसानों को उनके खेत की जमीन की गुणवत्ता के अनुसार खाद, बीज आदि का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। प्रदेश में मिट्टी की गुणवत्ता जांचने के लिए 100 मिट्टी जांच लेबोरेटरी सेवाएं प्रदान कर रही हैं। इन लैबोरेट्रीज की मदद से अब तक 25 लाख सैंपल लेकर जांच की गई है।

नो टेंशन किसानी

खेती किसानी में जोखिमों की अधिक संभावनाओं के बावजूद प्रदेश के किसानों की किसानी संबंधी चिंताओं को कम करने की सरकार द्वारा कोशिश की जा रही है। मुख्य सचिव ने एग्रीकल्चर रिस्क को कम करने के लिए प्रदेश में किए जा रहे प्रयासों पर ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने बताया हरियाणा में कृषि की बेहतरी के लिए कृषि उत्पाद व्यापार को बढ़ावा देकर खेती को एक लाभकारी आर्थिक गतिविधि बनाने के लिए योजनाओं का सफल क्रियान्वन किया जा रहा है। कृषि एवं कृषक हित से जुड़ी इन योजनाओं के क्रियान्वन के लिए राज्य की प्रदेश स्तरीय अनुमोदन समिति की बैठक में अनुमति दी गई है। इन योजनाओं के लागू होने से कृषि आधारित उच्च तकनीक को विकसित करने में सहायता मिल सकेगी। इन योजनाओं से मुख्य लक्ष्य किसान की आमदनी भी बढ़ेगी।
कम उर्वरा शक्ति से बेहतर उत्पादन की तरफ बढ़ती हमारी मिट्टी

कम उर्वरा शक्ति से बेहतर उत्पादन की तरफ बढ़ती हमारी मिट्टी

भारत में पाई जाने वाली मृदा का वर्गीकरण और सम्पूर्ण जानकारी

कई लाखों साल में बनकर तैयार होने वाली मिट्टी की एक छोटी सी परत, किसान भाइयों के लिए कृषि के दौरान इस्तेमाल में आने वाली एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक स्रोत है। बेहतरीन गुणवत्ता की मृदा की मदद से ही आज हम अपनी खेती से अधिक उत्पादकता प्राप्त कर पा रहे हैं, साथ ही इस मृदा में कई प्रकार के छोटे जीव जंतु भी रहते है। हर प्रकार की मिट्टी में जैविक और अजैविक तत्व पाए जाते हैं, जैविक तत्व को
ह्यूमस (humus) के नाम से जाना जाता है।

भारतीय मृदा का वर्गीकरण (Soil classification) :

अलग-अलग प्रकार की मृदा निर्माण में शामिल अलग-अलग प्रकार के कारक, उनके रंग, मृदा के कणों की मोटाई, उम्र तथा रासायनिक और भौतिक गुणों के आधार पर भारत में पायी जाने वाली मृदा को कई प्रकार से विभाजित किया जा सकता है, जो कि निम्न प्रकार से है :- अलग-अलग प्रकार की वातावरणीय परिस्थितियां और वहां पाए जाने वाली वनस्पति तथा लैंडफॉर्म (Landform) विभिन्न प्रकार की मृदा निर्माण में सहायक भूमिका निभाते है।


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जलोढ़ मिट्टी (Alluvial soil) :

भारत के कुल क्षेत्रफल में पायी जाने वाली सभी मृदाओं में सर्वाधिक योगदान जलोढ़ मिट्टी या दोमट मृदा का ही है।

उतरी भारतीय समतल मैदान पूर्णतः जलोढ़ मिट्टी (jalod mitti) से ही निर्मित है, इन मैदानों का निर्माण मुख्यतः गंगा, ब्रह्मपुत्र और सिंधु नदी के नदी तंत्र द्वारा लाए जाने वाले मिट्टी से हुआ है। राजस्थान और गुजरात के कुछ क्षेत्रों में भी जलोढ़ मृदा पाई जाती है। इसके अलावा पूर्वी भारत की नदियों के डेल्टा के द्वारा भी जलोढ़ मृदा के मैदानों को तैयार किया गया है, जिनमें महानदी, गोदावरी और कृष्णा नदियों की मुख्य भूमिका रही है।

जलोढ़ मृदा में मिट्टी और सिल्ट की अलग-अलग मात्रा पाई जाती है। जलोढ़ मृदा निर्माण में लगने वाले समय अथार्त उम्र के आधार पर, इसे दो भागों में विभाजित किया जाता है, जिन्हें बांगर (Bangar) और खादर (Khadar) के नाम से जाना जाता है।

खादर प्रकार की जलोढ़ मृदा को नई जलोढ़ कहा जाता है और इसमें पतले कणों (Fine Particles) की संख्या ज्यादा होती है और बांगर की तुलना में यह ज्यादा उर्वरा शक्ति वाली मृदा होती है

यदि बात करें जलोढ़ मृदा में पाए जाने वाले पोषक तत्वों की, तो इसमें पोटाश, फास्फोरिक अम्ल और लाइम जैसे पोषक तत्वों की उचित मात्रा पाई जाती है। इसीलिए इस प्रकार की मृदा गन्ना, धान और गेहूं के अलावा कई प्रकार की दालों के उत्पादन के लिए सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है।

जलोढ़ मृदा की बेहतर उर्वरा शक्ति की वजह से जिन जगहों पर यह मृदा पाई जाती है, वहां पर अग्रसर कृषि (Intensive Cultivation) की जाती है और ऐसी जगहों का जनसंख्या घनत्व भी अधिक होता है।

सूखी और कम बारिश वाली जगह पर पाई जाने वाली मृदा में अम्लता के गुण ज्यादा होते है, लेकिन मृदा के उचित उपचार एवं बेहतर सिंचाई की मदद से इसे भी कृषि में इस्तेमाल योग्य बनाया जा सकता है।

लाल एवं पीली मृदा (Red and Yellow soil) :

आग्नेय प्रकार की चट्टानों से निर्मित होने वाली यह मृदा कम वर्षा वाले क्षेत्रों में पाई जाती है। दक्कन के पठार के पूर्वी और दक्षिणी हिस्सों में इस प्रकार की मृदा का सर्वाधिक देखा जाता है। इसके अलावा उड़ीसा, छत्तीसगढ़ एवं गंगा के मैदानों के दक्षिणी क्षेत्रों में भी कुछ क्षेत्रों में यह मृदा पायी जाती है।

इस प्रकार की मृदा का रंग लाल होने का पीछे का कारण यह है कि इसके निर्माण में आयरन (iron) चट्टानों का योगदान रहता है और जब यह मृदा पूरी तरह से हाइड्रेट रूप (Hydrate Form) में होती है, तो इनका रंग पीला दिखाई देता है।

काली मृदा (Black soil) :

कपास के उत्पादन के लिए सर्वश्रेष्ठ मानी जाने वाली इस मृदा का रंग काला होता है, इसे रेगुरु मृदा (Regur soil) भी कहा जाता है।

दक्कन के पठार (Deccan Plateau) और इसके उत्तरी पूर्वी क्षेत्रों में पाई जाने वाली काली मृदा, जमीन से निकले लावा से निर्मित हुई है, इसीलिए इसका रंग काला होता है। महाराष्ट्र और सौराष्ट्र के पठारी क्षेत्र के अलावा मालवा और मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में पाई जाने वाली रेगुर मिट्टी गोदावरी और कृष्णा नदी की घाटियों में भी फैली हुई है।

पतले पार्टीकल से बनी हुई यह मिट्टी पानी और उसकी नमी को बहुत ही अच्छे से रोक कर रख सकती है।

कई प्रकार के मृदा पोषक तत्व जैसे कि कैलशियम कार्बोनेट, मैग्नीशियम और पोटेशियम तथा लाइम की अधिकता वाली इस मिट्टी में फास्फोरस जैसे सूक्ष्म तत्वों की कमी पाई जाती है।

गर्मी के मौसम के दौरान इस प्रकार की मृदा में बड़े-बड़े क्रेक (cracks) दिखाई देते है, जो कि इस मृदा का एक बेहतरीन लक्षण है और इन क्रेक की वजह से मिट्टी के अंदर तक हवा का आसानी से आदान-प्रदान हो जाता है।

बारिश के दौरान यह मृदा चिकनी हो जाती है। कृषि वैज्ञानिकों की राय के अनुसार, काली मृदा की मॉनसून आने से पहले ही जुताई कर देना सही रहता है, क्योंकि एक बार बारिश में भीग जाने पर इसकी जुताई करना बहुत मुश्किल होता है।

लेटराइट मृदा (Laterite soil) :

इस मृदा का नामकरण लेटिन भाषा के शब्द 'लेटर' से हुआ है जिसका तात्पर्य होता ईंट।

उष्ण एवं उपोष्ण जलवायुवीय परिस्थितियों से निर्मित हुई यह मिट्टी नमी और सूखे दोनों ही प्रकार के स्थानों पर देखने को मिलती है। एक समय सामान्य प्रकार की मिट्टी के रूप में जाने जाने वाली लेटराइट मृदा उच्च स्तर पर मृदा लीचिंग (soil leaching) होने की वजह से निर्मित हुई है।

लेटराइट मृदा की pH का मान 6 से कम होता है, इसीलिए इन्हें अम्लीय मृदा भी कहा जा सकता है।

दक्षिण के कुछ राज्यों और पश्चिमी घाट से जुड़े हुए राज्य जैसे कि महाराष्ट्र और गोवा में इस प्रकार की मृदा देखने को मिलती है, साथ ही उत्तरी पूर्वी भारत के कई राज्यों में भी यह पाई जाती है।

पतझड़ और हरित वनों को आधार प्रदान करने वाली इस मिट्टी में ह्यूमस की कमी देखने को मिलती है।

लेटराइट मृदा मुख्यतः ढलाव वाली जगहों पर पाई जाती है, इसीलिए मृदा अपरदन जैसी समस्या अधिक देखने को मिलती है।

मृदा संरक्षण की बेहतरीन तकनीकों को अपनाकर केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे राज्य इसी मृदा के इस्तेमाल से बेहतरीन गुणवत्ता की चाय और कॉफी का उत्पादन कर रहे हैं, साथ ही तमिलनाडु के कुछ क्षेत्रों में पाई जाने वाली लाल लेटराइट मृदा, काजू के उत्पादन के लिए सर्वश्रेष्ठ समझी जाती है।

शुष्क मृदा (Arid soil) :

प्रकृति में लवणीय मृदा के रूप में पहचान बना चुकी शुष्क मृदा भूरे और हल्के लाल रंग में देखी जाती है।

कई जगहों पर पाई जाने वाली शुष्क मृदा में लवणीयता का गुण इतना अधिक होता है कि इस प्रकार की मृदा से दैनिक इस्तेमाल में आने वाला नमक भी प्राप्त किया जाता है।

कम बारिश वाले शुष्क स्थानों और अधिक तापमान वाले क्षेत्रों में पाई जाने वाली इस मृदा में वाष्पोत्सर्जन की दर बहुत तेज होती है, इसी वजह से इनमें ह्यूमस और नमी की कमी भी देखने को मिलती है।

शुष्क मृदा में गहराई पर जाने पर कैल्शियम की मात्रा अधिक हो जाती है और मृदा अपरदन के दौरान ऊपर की परत हट जाने से नीचे की बची हुई मिट्टी फसल उत्पादन के लिए पूरी तरीके से अनुपयोगी हो जाती है। हालांकि, पिछले कुछ समय से कृषि विज्ञान की नई तकनीकों और बेहतर मशीनरी की मदद से राजस्थान और गुजरात के शुष्क इलाकों में पाई जाने वाली मिट्टी भी फसल उत्पादकता में वृद्धि देखने को मिली है।

वनीय मृदा (Forest soil) :

चट्टानी और पर्वतीय क्षेत्रों में पायी जाने वाली यह मृदा उस क्षेत्र की पर्यावरणीय परिस्थितियों से प्रभावित होती है।

हिमालय और उसके आसपास के क्षेत्रों में पाई जाने वाली मृदा पर बर्फ पड़ने की वजह से आच्छादन (Denudation) जैसी समस्या देखने को मिलती है और इसी वजह से उसके अम्लीय गुणों में भी वृद्धि होती है, जिस कारण ऊपरी ढलानी क्षेत्रों पर फसल और खेती का उत्पादन नहीं किया जा सकता है और केवल कठिन परिस्थितियों में उगने वाले वनों के पौधे ही विकसित हो पाते है।

घाटी के निचले स्तर पर पाई जाने वाली वनीय मृदा की उर्वरा शक्ति अच्छी होती है, इसीलिए उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के कुछ किसान घाटी से जुड़े हुए समतल मैदानों पर आसानी से कृषि उत्पादन कर सकते है।

इन सभी मृदा के प्रकारों के अलावा भारतीय मृदा को अम्लीयता एवं क्षारीयता के गुणों के आधार पर भी दो भागों में बांटा जा सकता है। वर्षा की अधिकता वाले स्थानों पर पाई जाती पायी जाने वाली और मृदा की लीचिंग होने वाली जगहों की मिट्टी की pH का मान 7 से कम होता है, इसीलिए इन्हें अम्लीय मृदा कहा जाता है और जिन मृदाओं में pH मान 7 से अधिक होता है, उन्हें क्षारीय मृदा कहा जाता हैआईसीएआर (ICAR - The Indian Council of Agricultural Research) की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत के कुल मृदा क्षेत्रफल में 70% हिस्सेदारी अम्लीय मृदा की है।


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भारतीय मृदाओं की समस्या :

किसानों की उपज और मुनाफे के सर्वश्रेष्ठ स्रोत कृषि उत्पादन में मुख्य भूमिका निभाने वाली भारतीय मृदा कई प्रकार की समस्याओं से जूझ रही है। अलग-अलग राज्यों में यह समस्या अलग-अलग हो सकती है, जैसे कि पंजाब और हरियाणा राज्य में पानी के अधिक इस्तेमाल की वजह से मृदा में अम्लीयता एवं लवणता की समस्या बढ़ रही है, जिससे कि समय के साथ इन राज्य में होने वाला उत्पादन भी कम होते जा रहा है। इसके अलावा मध्य भारत और उत्तरी भारत के राज्य में पशुओं के द्वारा इस्तेमाल में आने वाले चारे के कारण ओवरग्रेजिंग (Over-grazing) से खरपतवार बहुत तेजी से बढ़ रही है और इसी कारण मृदा की उर्वरा शक्ति भी कम होती जा रही है।


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इसके अलावा कृषि का आधुनिक मशीनीकरण और अधिक उत्पादन के लिए मृदा पर किए जा रहे रासायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध इस्तेमाल से भी नकारात्मक प्रभाव देखने को मिल रहे है और मृदा की उर्वरा शक्ति में भारी कमी होने के साथ ही मर्दा के कणों में आपस में जुड़े रहने की क्षमता भी कम हो रही है, जिससे मृदा अपरदन की समस्या भी अधिक देखने को मिल रही है।

मृदा अपरदन (Soil erosion) :

पानी और हवा की वजह से मृदा की ऊपरी परत के आच्छादन (Denudation) होने की समस्या को ही मृदा अपरदन कहते है। मृदा अपरदन कोई आधुनिक समस्या नहीं है, बल्कि प्राचीन काल से ही चली आ रही है। हालांकि प्रकृति अपने नियमों के अनुसार मृदा अपरदन और मृदा के निर्माण में एक संयम बना कर रखती थी, परंतु पिछले कुछ समय से प्रकृति के साथ मानवीय छेड़छाड़ जैसे कि वनों की कटाई और विकास के लिए किए जा रहे कंस्ट्रक्शन और माइनिंग के कार्य तथा ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्याओं से यह बैलेंस पूरी तरीके से बिगड़ गया है और अब मृदा अपरदन समस्या बहुत तेजी से बढ़ती हुई नजर आ रही है। पानी से होने वाले मृदा अपरदन को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है :-
  • गली अपरदन (Gully erosion) :

मृदा के एक हिस्से के ऊपर से बह रहा पानी मिट्टी को काटकर धीरे-धीरे उसमें एक गहरी गली बना लेता है और धीरे-धीरे यह गली खेत की पूरी जमीन में फैल जाती है।

चंबल नदी के पानी के द्वारा किए गए गली अपरदन की वजह से ही उसके आसपास के क्षेत्र फसल उपजाऊ करने के लिए पूरी तरीके से अनुपयोगी हो चुके है, ऐसे क्षेत्रों को खड़ीन (khadin) नाम से जाना जाता है।

  • परत अपरदन (Sheet erosion) :-

ढलान वाली जगहों पर कई बार पानी एक परत के रूप में मृदा के ऊपर से बहता है और अपने साथ मृदा की ऊपरी परत को भी बहाकर ले जाता है।

किसान भाई यह तो जानते ही है कि बेहतर फ़सल उत्पादन के लिए मृदा की ऊपरी परत सर्वश्रेष्ठ होती है। अपरदन की वजह से ऊपरी परत बह जाने से नीचे बची हुई परत को फिर से उर्वरक और बेहतरीन सिंचाई की कठिन मेहनत के बाद भी उपजाऊ बनाना काफी मुश्किल होता है। पहाड़ी और ढलान वाले क्षेत्रों में मृदा अपरदन की समस्या को रोकना थोड़ा मुश्किल होता है, हालांकि फिर भी कृषि विज्ञान की नई तकनीकों और मृदा अपरदन के क्षेत्र में काम कर रहे सक्रिय एक्टिविस्ट लोगों की मदद से नई तकनीकों का विकास किया जा चुका है, इस प्रकार की तकनीकों को मृदा संरक्षण के नाम से जाना जाता है।


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मृदा अपरदन रोकने / मृदा संरक्षण (Soil Conservation) के लिए अपनाई जाने वाली तकनीक :-

गलत तरीके से जुताई करने की वजह से भी कई बार मृदा अपरदन हो सकता है, क्योंकि यदि आप खेत के एक हिस्से में कल्टीवेटर की मदद से कम गहरी जुताई करते है और दूसरे कोने में अधिक गहरी जुताई हो जाए तो वहां पर ढलान वाला क्षेत्र निर्मित हो जाता है, जिससे पानी को आसानी से लुढ़कने के लिए पर्याप्त जगह मिल जाती है और मृदा का कटाव होना शुरू हो जाता है इस प्रकार से होने वाले मृदा अपरदन को रोकने के लिए समोच्च जुताई (Contour Ploughing ) की विधि को अपनाया जाता है। समोच्च जुताई की मदद से जुताई के दौरान बनने वाली अलग-अलग पंक्तियों में जल का वितरण किया जा सकता है। मिट्टी की गुणवत्ता एवं उर्वरा शक्ति तथा संरचना को बरकरार रखने में मददगार यह विधि पहाड़ी और ढलानी क्षेत्र के किसानों के द्वारा सर्वाधिक इस्तेमाल में लाई जाती है, भारत में भी हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और आसाम तथा सिक्किम जैसे राज्यों के किसान इस विधि की मदद से मृदा अपरदन को रोकने में सफल हुए है। इसके अलावा ऐसे क्षेत्रों में सीढ़ी नुमा खेती (Terrace cultivation) भी की जाती है, जिसमें पहाड़ियों वाले क्षेत्र को अलग-अलग ब्लॉक्स में बांट दिया जाता है और एक सीढ़ी जैसी संरचना बना दी जाती है, जिससे कि पहाड़ी के ऊपरी हिस्से पर गिरने वाला पानी तेज गति से मृदा का कटाव करते हुए नीचे की तरफ ना आ पाए और ढलाव के दौरान ही पानी को रुकने के लिए थोड़ा समय मिल जाए, जिससे मृदा की ऊपरी परत के अपरदन को बचाया जा सकता है। तेज हवा चलने वाले इलाकों में मृदा अपरदन को बचाने के लिए खेत के चारों तरफ बड़े-बड़े पेड़ लगा दिए जाते है, जो कि खेत में उगने वाली फसल को तेज हवा से बचाव प्रदान करते है, इस प्रकार की विधि को शेल्टरबेल्ट / वातरोधक विधि (Shelter belt cultivation) कहा जाता है। भारत के पश्चिमी भागों और रेगिस्तानी क्षेत्रों में खेती वाली जमीन में मिट्टी के टीलों के प्रसार को रोकने के लिए भी इस विधि का इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा रेगिस्तानी क्षेत्रों में कृषि के लिए प्रयासरत कुछ अरब देश जैसे सऊदी अरेबिया और संयुक्त अरब अमीरात में खेती के दौरान फसलों की पंक्तियों के बीच में घास की अलग-अलग पंक्तियां उगायी जाती है जो कि हवा के दबाव को कम करने के साथ ही वायु से होने वाले मृदा अपरदन को रोकने में सहायक होती है, इस तकनीक को स्ट्रिप क्रॉपिंग / पट्टीदार खेती (Strip Cultivation) के नाम से जाना जाता है।


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मृदा की घटती उर्वरा क्षमता और मृदा संरक्षण को बेहतर बनाने के लिए किए गए सरकारी प्रयास :

हरित क्रांति के शुरुआत में ही भारतीय सरकार और कृषि वैज्ञानिकों ने यह तो समझ लिया था कि केवल उच्च गुणवत्ता वाले बीज और अधिक सिंचाई से ही नहीं, बल्कि मृदा की बेहतर गुणवत्ता से ही अधिक उत्पादन किया जा सकता है और इसी की तर्ज पर चलते हुए भारत सरकार और कई राज्य सरकारों ने मृदा संरक्षण के लिए कुछ सरकारी स्कीम शुरू की है, जो कि निम्न प्रकार है :-

राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY - Rashtriya Krishi Vikas Yojana) :

मृदा की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के अलावा अलग-अलग क्षेत्रों में पायी जाने वाली मृदा की गुणवत्ता में तुलनात्मक अंतर को किसानों तक पहुंचाकर जागरूकता लाने के उद्देश्य से प्रारम्भ की गई यह योजना काफी सफल रही है। इस योजना में मृदा की ऊपरी परत में होने वाले अपरदन को रोकने के लिए कई नए प्रयास किए गए हैं। इसके अलावा नदी-घाटियों के प्रसार को रोकने के लिए भी उपाय सुझाए गए है, जिससे कि पानी के कम फैलाव से लीचिंग तथा खडीन जैसी समस्याएं कम देखने को मिले।

मृदा स्वास्थ्य कार्ड स्कीम (Soil health card scheme) :

2015 में लांच की गई इस स्कीम के तहत भारत सरकार किसानों की मृदा की गुणवत्ता की जांच करने के लिए 'स्वस्थ धरा, खेत हरा' की तर्ज पर काम करते हुए अलग-अलग मृदा स्वास्थ्य कार्ड प्रदान कर रही है।


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मृदा स्वास्थ्य कार्ड में 12 अलग-अलग पैरामीटर के आधार पर किसान भाइयों को उर्वरकों के सीमित इस्तेमाल की सलाह दी जाती है, जिनमें कुछ सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे कि नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम के अलावा द्वितीय पोषक तत्व जैसे कि जिंक, फेरस, कॉपर की मात्रा की जानकारी देने के साथ ही मृदा की अम्लीयता की जानकारी भी प्रदान की जाती है। इस स्कीम के तहत कोई भी किसान भाई अपने आसपास में स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों की मदद से खेत की मिट्टी की जांच करवा सकता है और उनके द्वारा दी गई सलाह का सही पालन करके हुए मृदा की उर्वरा क्षमता बरकरार रखने के साथ ही अपनी उत्पादकता को बेहतर कर सकता है।

नाबार्ड की मृदा संरक्षण के लिए चलाई गई लोन स्कीम (NABARD loan scheme on Soil Conservation) :

2001 से लगातार संचालित हो रही यह स्कीम किसानों को समोच्च विकास (Sustainable Development) की अवधारणा पर काम करने की सलाह देती है और कुछ नई वैज्ञानिक तकनीकों की मदद से किसान भाइयों की उपज को बढ़ाने में मदद करती है। पर्यावरण के कम नुकसान के साथ मृदा की गुणवत्ता को बेहतर बनाने के लिए ग्रामीण चौपालों का आयोजन किया जाता है, इन चौपालों में किसान भाइयों को मृदा अपरदन के लिए जागरूकता प्रदान की जाती है। इसके अलावा झूम कृषि समस्या से ग्रसित उत्तरी पूर्वी राज्यों में भारत की आजादी से ही मृदा संरक्षण के लिए कई प्रकार की सरकारी योजनाएं चलाई जा रही है।भारत में झूम कृषि मुख्यतः उत्तरी पूर्वी राज्यों में की जाती है। कृषि की इस विधि में कुछ किसानों के द्वारा जंगलों को काट कर साफ कर लिया जाता है और वहां पर फसल उगाई जाती है, जब दो से तीन सीजन के बाद इस जमीन की उर्वरा शक्ति कम हो जाती है तो दूसरी जगह पर बने जंगलों को काट कर वहां की जमीन को इस्तेमाल में लिया जाता है। पिछले कुछ सालों से पर्यावरण के लिए एक घातक विधि के रूप में हो रही झूम खेती को रोकने के लिए किसानों में जागरूकता लाने के लिए कई पर्यावरणविद  और सरकार प्रयासरत है। ईशा फाउंडेशन के द्वारा मृदा संरक्षण के लिए चलाया जा रहा मृदा बचाओ आंदोलन (Save soil movement) अनोखी विश्वस्तरीय पहल है और अब केवल जंगल और पानी ही नहीं बल्कि मृदा संरक्षण के लिए भी कई ग्रामीण किसान भाई प्रयासरत है।
"मृदा से है जीवन अपना, इसकी सुरक्षा हमारा सपना"
की सोच पर काम करने वाले कई किसान भाई पूरे देश भर में प्राकृतिक कृषि और वैज्ञानिक विधियों की मदद से समोच्च विकास की अवधारणा पर आगे बढ़ते हुए भारतीय कृषि की उत्पादन क्षमता बढ़ाने के अलावा मृदा के संरक्षण में भी एक सफल व्यक्तित्व के रूप में उभरकर सामने आए है।
बिहार में मशरूम की खेती करने पर सरकार दे रही 90 फीसदी अनुदान

बिहार में मशरूम की खेती करने पर सरकार दे रही 90 फीसदी अनुदान

पटना। मशरूम यानी कुकुरमुत्ता (कवक - Mushroom) की खेती को बढ़ावा देने के लिए बिहार सरकार ने बड़ा एलान किया है। बिहार सरकार ने राज्य के किसानों को मशरूम की खेती करने पर 90 फीसदी तक अनुदान देने की घोषणा की है। अभी तक बिहार में किसान परम्परागत खेती ही करते रहे हैं। लेकिन इस बार मशरूम की खेती की ओर किसानों का ध्यान आकर्षित करने के लिए सरकार ने एक अच्छी मुहिम शुरू की है। इस साल मशरूम की खेती पर 90 फीसदी तक अनुदान देकर सरकार मशरूम की खेती पर जोर दे रही है।

मुख्यमंत्री बागवानी मिशन योजना से मिलेगा अनुदान

बिहार सरकार मशरूम की खेती करने वाले किसानों को 'मुख्यमंत्री बागवानी मिशन' के तहत 90 फीसदी तक अनुदान दे रही है। योजना में शामिल होने के लिए किसानों से आवेदन मांगे जा रहे हैं, किसानों में भी इस योजना को लेकर खासा उत्साह दिखाई दे रहा है। ये भी पढ़े: मशरूम के इस मॉडल से खड़ा किया 50 लाख का व्यवसाय

खगरिया जिले में 500 किसान कर रहे हैं मशरूम की खेती

बिहार में अभी तक खगरिया जिले में तकरीबन 500 किसान मशरूम की खेती कर रहे हैं। सरकार द्वारा मशरूम की खेती पर प्रोत्साहन राशि मिलने के बाद उम्मीद जताई जा रही है कि मशरूम की खेती करने वाले किसानों की संख्या में काफी बढ़ोतरी हो सकती है।

झोंपड़ी में मशरूम की खेती से किसान की आमदनी होगी दोगुनी

राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत झोंपडी में मशरूम की खेती करने वाले किसानों की आमदनी दोगुनी हो सकती है। इस योजना के तहत किसानों को अलग से 50 फीसदी तक अनुदान दिया जा रहा है। झोंपड़ी बनाने से लेकर मशरूम की खेती करने तक आने वाली लागत पर 50 फीसदी अनुदान देने का प्रावधान रखा गया है, इस कुल लागत का 50 प्रतिशत खर्च यानि 20 लाख रुपए की लागत में 10 लाख रुपये सब्सिडी के रूप में राज्य सरकार वहन करेगी और शेष धनराशि किसान को लगानी होगी।

मशरूम पर अनुदान के लिए ऐसे करें आवेदन

मुख्यमंत्री बागवानी विकास मिशन के तहत मशरूम की खेती पर सब्सिडी का लाभ लेने के लिए बिहार कृषि विभाग, उद्यान निदेशालय की आधिकारिक वेबसाइट http://horticulture.bihar.gov.in/ पर आवेदन कर सकते हैं। अगर किसान चाहें तो इस योजना से संबंधित अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए अपने नजदीकी जिले के उद्यान विभाग कार्यालय में जाकर सहायक निदेशक से भी संपर्क किया जा सकता है।
किसानों को मिलेगा लाभ, सरकार देगी अनुदान

किसानों को मिलेगा लाभ, सरकार देगी अनुदान

रजनीगंधा, गेंदा और मसालों की खेती करने वाले किसानों के लिए बड़ी खुशखबरी है. जहां राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत चुनिंदा खेती करने वाले किसानों को अनुदान दिया जा रहा है. देश में लगातार बागवानी फसलों का क्रेज बढ़ रहा है. बागवानी की ये फसलें कम लागत के साथ कम समय में किसानों की आय बढ़ाने में मददगार साबित हो रही हैं. जिसके बाद किसान भी अन्य तरह की फसलों के साथ बागवानी फसलों की खेती करने लगे हैं. ताकि अतिरिक्त इनकम की जा सके. हालांकि इस काम में सरकार भी किसानों की खूब मदद कर रही है, ताकि वो उन्हें तकनीकी आर्थिक सहयोग दे सके. इसी तर्ज पर सरकार की राष्ट्रीय कृषि विकास योजना से उत्तर प्रदेश के किसानों को जोड़ा जा रहा है. यूपी के जिले शामली में कुछ खास चुनिंदा फल, सब्जी और फूल के साथ मसालों की खेती के लिए सरकार ने अनुदान का प्रावधान किया है. जिसे लेकर ज्यादा से ज्यादा किसानों को इसका फायदा मिल सके इसलिये उद्यान विभाग को निर्देश भी दे दिए गये हैं.

यह फसलें देंगी फायदा

गन्ना और गेहूं की फसलों के अलावा दूसरी तरह की फसलों की खेती करने को लेकर किसानों को प्रेरित करने का लक्ष्य रखा गया है. जिसके अंतर्गत समय समय पर किसानों को लाभान्वित किया जाएगा. योजना के तहत लीची, रजनीगंधा, गेंदा, शिमला मिर्च, प्याज, कद्दू की खेती पर किसानों को आर्थिक मदद दी जाती है. तो वहीं कुछ फसलों की खेती के लिए अनुसूचित जाति और जनजाति के किसानों को जोड़ा है.

कौन सी फसल में कितना अनुदान?

बागवानी की फसलों का उत्पादन बढ़ाने के अलावा खेती में लगने वाली लागत को कम करने के लिए योजना के तहत अलग अलग तरह की फसलों पर अलग अलग दरों पर अनुदान दिया जाता है.

राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के बारे में

  • अगर किसान आम की बागवानी करता है तो, उसे 25 हजार 500 रुपये प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 50 फीसद अनुदान दिया जाएगा. किसानों को यह पैसा तीन किस्तों में मिलेगा.
  • अगर किसान अमरुद की बागवानी करता है तो प्रति हेक्टेयर का खर्च लगभग 38 हजार 340 रुपये तय किया गया है. जो 50 फीसद सब्सिडी के हिसाब से तीन किस्तों में दी जाएगी.
  • अगर किसान लीची की बागवानी करता है तो उन्हें प्रति हेक्टेयर की लागर करीब 28 हजार रुपये में 50 फीसद छूट मिलेगी. या पैसा भी किसानों को तीन किस्तों में दिया जाएगा.
  • वहीं शिमला मिर्च और हाइब्रिड सब्जियों के साथ कद्दू की खेती करने पर किसानों को 40 फीसद की अनुदान राशि दी जाएगी.
  • रजनीगंधा की खेती करने वाले किसनों को 40 फीसद सब्सिडी के रूप में मदद मिलेगी.
राजस्थान सरकार किसानों को फल और मसालों की खेती के लिए प्रोत्साहन राशि दे रही है।

राजस्थान सरकार किसानों को फल और मसालों की खेती के लिए प्रोत्साहन राशि दे रही है।

राजस्थान सरकार राष्ट्रीय बागवानी मिशन और कृषि विकास योजना के अंतर्गत किसानों को अनुदान प्रदान करेगी। दरअसल, राज्य में किसानों को पारंपरिक फसलें जैसे कि मक्का, गेहूं और सरसों आदि की खेती से अच्छी आमदनी नहीं हो पा रही है। राजस्थान में किसान अब बागवानी और मसालों की खेती करेंगे। इसके लिए किसानों को राज्य सरकार की तरफ से अच्छी खासी सब्सिडी मुहैय्या कराई जाएगी। मुख्य बात यह है, कि सब्सिडी पाने के लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सरकार द्वारा करोड़ों रुपये की धनराशि स्वीकृत कर दी है। अगर राजस्थान के किसान फल और मसालों की खेती करते हैं, तो उन्हें 40 प्रतिशत तक अनुदान मिलेगा। इसके लिए उन्हें राजकिसान साथी पोर्टल पर जाकर आवेदन करना पड़ेगा।

राजस्थान के किसानों को पारंपरिक फसलों से कोई लाभ नहीं मिला

राजस्थान सरकार राष्ट्रीय बागवानी मिशन और कृषि विकास योजना के अंतर्गत किसानों को अनुदान देगी। दरअसल, राज्य सरकार का यह मानना है, कि प्रदेश में किसान भाइयों को गेहूं, सरसों एवं मक्का जैसी पारंपरिक फसलों की खेती से अच्छी आय नहीं हो पा रही है। अगर प्रदेश के किसान आधुनिक विधि से बागवानी और मसालों की खेती करते हैं, तो किसानों की आमदनी में काफी बढ़ोतरी हो सकती है। यही कारण है, कि राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बागवानी और मसाले के क्षेत्रफल में विस्तार करने के लिए 23.79 करोड़ रुपये की मंजूरी दी है। ये भी पढ़े: दालचीनी की खेती से संबंधित विस्तृत जानकारी (How to Grow Cinnamon)

राजस्थान सरकार 7609 हेक्टेयर में फल के बगीचे तैयार कर रही है

सरकारी अधिकारियों के अनुसार, राजस्थान सरकार ने वर्ष 2023-24 में 7609 हेक्टेयर भूमि में फल के बगीचे तैयार करने की योजना तैयार की है। इसके ऊपर सरकार सब्सिडी के तौर पर 22.40 करोड़ रुपये खर्च करेगी। साथ ही, मसाले के रकबे के विस्तार पर अनुदान धनराशि के रूप में 1.39 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। मुख्यमंत्री कार्यालय के अनुसार, सीएम गहलोत द्वारा मंजूर किए गए 23.79 करोड़ रुपये में से 17.24 करोड़ रुपये की धनराशि राजस्थान कृषक कल्याण कोष में से प्रदान की जाएगी। साथ ही, 6.55 करोड़ रुपये राष्ट्रीय बागवानी मिशन एवं राष्ट्रीय कृषि विकास योजना से खर्च किए जाएंगे।

राजस्थान सरकार कितना अनुदान प्रदान कर रही है

मुख्य बात यह है, कि राजस्थान में सरकार पूर्व से ही मसालों की खेती पर अनुदान मुहैय्या कर रही है। साथ ही, किसानों को आधुनिक विधि से मसालों की खेती करने के लिए प्रशिक्षण भी दिया जाता है। लेकिन, इस योजना के अंतर्गत ज्यादा से ज्यादा 4 हेक्टेयर एवं कम से कम 0.50 हेक्टेयर में मसालों की खेती करने वाले किसान अनुदान का फायदा उठा सकते हैं। किसानों को 40 प्रतिशत अनुदानित धनराशि दी जाएगी। मतलब कि उन्हें प्रति हेक्टेयर 5500 रुपये अनुदान के रूप में मिलेंगे।

अनुदान का फायदा लेने के लिए आवश्यक दस्तावेज

अगर किसान भाई अनुदान का फायदा उठाना चाहते हैं, तो नजदीकी ई-मित्र केंद्र अथवा राजकिसान साथी पोर्टल पर जाकर आवेदन कर सकते हैं। आवेदन करते समय किसान के पास खुद की खेत की जमाबंदी, आधार कार्ड, खेती योग्य जमीन, इलेक्ट्रिसिटी बिल, बैंक पासबुक की कॉपी और स्थानीय आवासीय प्रमाण पत्र होना काफी अनिवार्य है।
राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अंतर्गत योगी सरकार बागवानी फसलों की खेती के लिए सब्सिडी प्रदान कर रही है

राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अंतर्गत योगी सरकार बागवानी फसलों की खेती के लिए सब्सिडी प्रदान कर रही है

राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अंतर्गत लहसुन, प्याज, मिर्च, गेंदा, लीची, शिमला मिर्च, अमरूद, कद्दू और रंजनीगंधा की खेती करने के लिए किसानों को अनुदान दिया जा रहा है। उत्तर प्रदेश में बागवानी की खेती करने वाले कृषकों के लिए अच्छी खबर है। बीजेपी सरकार हरी सब्जी, मसाले और फलों की खेती करने वाले कृषकों को अनुदान मुहैय्या करा रही है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार यह मानती है, कि पारंपरिक खेती की तुलना में बागवानी फसलों की खेती में ज्यादा मुनाफा होता है। यदि उत्तर प्रदेश के किसान मसाले, फल और सब्जियों का उत्पादन करते हैं, तो मोटी आमदनी अर्जित कर सकते हैं।

हापुड़ जनपद में बागवानी हेतु 50 प्रतिशत अनुदान

वर्तमान में हापुड़ जनपद के किसान अनुदान का लाभ उठा सकते हैं। जिला उद्यान विभाग राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अंतर्गत सब्जी, फल, फूल और मसालों की खेती करने पर अनुदान प्रदान कर रही है। विशेष बात यह है, कि यदि किसान भाई इनकी खेती करना चाहते हैं, तो विद्यान विभाग उनको 50 प्रतिशत तक सब्सिडी प्रदान करेगा। यदि किसान भाई अनुदान का फायदा लेना चाहते हैं, तो वह घर बैठे ही ऑनलाइन माध्यम से आवेदन कर सकते हैं।

कृषकों को अन्य फसलों का उत्पादन करने के लिए बढ़ावा दिया जा रहा है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि हापुड़ जनपद में किसान पारंपरिक खेती के साथ-साथ बागवानी फसलों की भी खेती करते हैं। परंतु, सरकार जनपद में बागवानी का क्षेत्रफल और बढ़ाना चाहती है। यही कारण है, कि राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अंतर्गत अनुदान देने का निर्णय लिया गया है। जिला उद्यान अधिकारी डॉ. हरित कुमार ने बताया है, कि जनपद में कृषकों को गेहूं एवं गन्ने के अतिरिक्त दूसरी फसलों की खेती करने के लिए भी बढ़ावा दिया जा रहा है, जिससे कि प्रत्येक वर्ग के किसानों को पहले की तुलना में अधिक आय अर्जित हो सके।

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जानें कितने प्रतिशत अनुदान मिलेगा

राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अंतर्गत कद्दू, लहसुन, प्याज, मिर्च, गेंदा, रंजनीगंधा, लीची, शिमला मिर्च और अमरूद की खेती करने के लिए किसानों को अनुदान दिया जा रहा है। उद्यान अधिकारी ने बताया कि राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अंतर्गत यदि कृषक भाई 30 हेक्टेयर क्षेत्रफल में आम, ड्रेगन फ्रूट, अमरूद और पपीता की खेती करते हैं, तो उन्हें 50 प्रतिशत अनुदान प्रदान किया जाएगा। यदि किसान भाई 30 हेक्टेयर में रजनीगंधा, ग्लेडियोलस और गेंदा जैसे फूलों की खेती करते हैं, तो उन्हें 40 प्रतिशत अनुदान मिलेगा।

कृषक भाई अनुदान हेतु यहां करें ऑनलाइन आवेदन

बतादें, कि इसके अतिरिक्त लौकी, करेला, शिमला मिर्च, तोरई, खीरे, पत्तागोभी, टमाटर और फूलगोभी की बुवाई 205 हेक्टेयर में करते हैं, तो इस पर कृषक भाइयों को 40 प्रतिशत अनुदान दिया जाएगा। इसी प्रकार 245 हेक्टेयर में लहसुन, प्याज और मिर्च की खेती करने पर 40 फीसदी तक अनुदान मिलेगा। यदि इच्छुक कृषक भाई चाहें, तो अनुदान का लाभ उठाने के लिए www.rkvy.nic.in पर ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं।